Sunday, April 26, 2015

बेटियाँ ही हैं लक्ष्मी, शिवा, शारदा

बेटियाँ ही हैं लक्ष्मी, शिवा, शारदा 




बेटियाँ हैं तो हँसते हुए फूल हैं,
बेटियों से चमन रहता गुलज़ार है |

बेटियाँ हैं तो सावन के झूले भी हैं,
बेटियाँ हैं तो बागों में मल्हार है |

बेटियों से है आँगन में किलकारियाँ,
बेटियों से ही जीवंत संसार है |

बेटियाँ ही हैं लक्ष्मी, शिवा, शारदा,
बेटियों को भी जीने का अधिकार है |



Saturday, August 7, 2010

गतांक से आगे....


मैंने और अगम शर्मा ने अपने नाम कि अलग अलग दो पर्चियां लिखीं,और काव्य पाठ   की प्रार्थना के साथ संचालक के पास भेज दी !
उदय प्रताप जी ने सरसरी निगाह पर्चियों पर डाली और अपने पास रख ली !
हमें उम्मीद थी की हमें बुलाया जाएगा ! ठण्ड लग रही थी! कुल्लाढ़  में कवियों के लिए चाय आ गई ! मामा जी ने कहा, चाय मत लेना ! कहीं कोई ये न कह दे की तुम को तो बुलाया नहीं है फिर चाय क्यों पी रहे हो ! आई हुई चाय लौटा दी और ठण्ड में कापते रहे ! कवियों के पास गर्म कपडे थे,शॉल थी ! कुछ कवि  तो कम्बल भी साथ ले कर आये थे ! हम घर से भाग कर आये थे ! वो भी बिना बताये ! यहाँ जाड़े का आनंद ले रहे थे !
     हम ने फिर पर्चियां भेजीं ! उदय प्रताप ने पर्चियों को घूरा, फिर हमें ! एक कवी को उन्होंने काव्य पाठ के लिए बुलाया ! और हमारे पास आ गए ! घुड़क कर बोले, मैं अनामंत्रित को काव्य पाठ नहीं करवाता ! तुम बिना बुलाये मंच पर कैसे आ गए ! चुप चाप कविता सुनो...समझे ? आस पास के दो-चार कवियों ने यह बात सुन  ली थी !
हम लोग बहुत झेंपे! मन में बहुत गुस्सा आया १ आखिर हम भी तो कवि हैं, नवोदित हैं तो क्या हुआ ! कितनी दूर से चल कर आये हैं ! आखिर शराफत भी कोई चीज़ होती है ! पर गुस्सा प्रकट करने का कोई मौका नहीं था हमारे पास ! हमारा एक कमजोर पक्ष था की हम बिना बुलाये मेहमान हैं ! उदय प्रताप ने ठीक जगह पर चोट की थी! हम लोग चुप चाप बैठ गए! हम लोगों की ना-समझी देखिये, चाय फिर आई, और हम लोगों ने बड़ी विनम्रता से चाय फिर लौटा दी ! हम रात भर पंडाल में ठिठुरते रहे !
दिनकर जी अध्यक्षता कर रहे थे ! हम लोगों ने तय किया की उदय जी की शिकायत दिनकर जी से करेंगे !हम खुश थे की उदय प्रताप जी पर डांट पड़ेगी ! कवि सम्मलेन भोर की किरण तक चला !
एक तम्बू में दिनकर जी बैठे सुवह की चाय पी रहे थे ! तम्बू में हम लोग घुस गए ! हम ने अपना परिचय दिया ! उन्हें अपनी-अपनी एक-एक कविता सुनाई ! उन्होंने हमारी पीठ ठोकी और हमें चाय पिलवाई ! हमें ठण्ड से कुछ राहत मिली ! हमने मौका देख कर रात की व्यथा कह सुनाई ! हमने बात पूरी की ही थी की उदय प्रताप जी आ गए !
हम लोग उन्हें देख कर कुछ डरे और कुछ झिझके ! किन्तु वे बोले, तुम लोग कविता लिखते हो तो हमने घर आ कर सुनाओ ! तुम्हारी कविता स्तरीय होगी तो तुम्हे हम अगले कवि सम्मलेन में बुलायेंगे ! हमारा गुस्सा और दर दूर हो गया !उदय प्रताप जी दिनकर जी को कार में बैठा कर ले गए ! सामने धुल उढ रही थी ! हमको नीरज जी की ये पंक्तियाँ -"कांरवा गुजर गया गुबार देखते रहे " बार-बार याद आ रही थी !
हमारी मौसी जी पास के ही एक गाँव में ही रहती थी !हमने पछायाँ गाँव जाने की ठानी ! चम्बल के बीहड़ों में बसा प्राचीन गाँव ! हम मौसी जी के घर पहुंचे ! उन्होंने कहा नहा लो तब तक खाना बना जा रहा है ! हम लोग नहाने के लिए चम्बल नदी की और चले गए ! बीहड़ के कगारों झर बेरियाँ खड़ीं थी ! उन में लाल लाल बेर लगे हुए थे ! हम लोग घंटे भर बेर खाते रहे !हाटों में कांटे चुभ गए थे ! पर परवाह किसे थी ! चम्बल में नहाए,स्वच्छा पानी में तली कि चीज़ें दिखाई दे रही थीं !देर से आने के लिए मौसी जी ने हमें डांटा !
सब्जी पूरी और मीठा खा कर हमें चैन पडा! हम ने मौसी जी को अपनी कवितायें सुनाई ! थोड़ी देर बाद हम सो गए ! सुवह होते ही घर कि तरफ चल दिए !घर पर माता जी कि डांट खानी पड़ी क्युकी हम बिना बताये घर से गायब हो गए थे !
गतांक से आगे




fदनकर जी को हमने छड़ी लिए निकलते देखा। हमने पंडाल के भीतर घुसने का प्रयास किया पर हमें आयोजको ने भीतर नहीं जाने दिया. हमने अपने कभी होने का वास्ता दिया किन्तु उन निष्ठूरो का मन नहीं पसीजा. कवी सम्मलेन प्रारंभ हो चूका था. हमें सरस्वती वंदना के स्वर सुने दे रहे थे. रह-रह कर हमारा दिल छारखता था . हम इस जुगार में थे पंडाल में कैसे जाया जाये.पंडाल खच-खच भरा हुआ था. २-३ हज़ार श्रोता पंडाल से बाहर भी थे. जो बहार से ही कविता सुन कर संतोष कर रहे थे.



सहसा हमारे भाग्य का पिटारा खुला. रात्री ११ बजे काका हाथरसी पधारे. काली दाड़ी, ऊनी कुर्ता, और सफ़ेद धोती, छरहरा बदन हमने पहकी बार काका को देखा . पहचान लिया वह बहुत लोक-प्रिय कवी थे . उन्हें नज़दीक से देखने के लिए ५०-६० आदमियों की भीड़ उनके पीछे-पीछे चल रही थी . हम भी उसी भीड़ में शामिल हो गए. काकाजी के पीछे-पीछे १५-२० लोग जबरदस्ती घुड गए. उसमे हम लोग भी थे . हम दोनों सीधे मंच पर जाकर बैठ गए उदयप्रताप सिंह संचरण कर रहे थे. काका हाथरसी को देखने के लिए पूरा पांडाल खड़ा हो गया. आज हमने जाना के कवी की लोक प्रियता क्या चीज़ होती हें ? उदय प्रताप ने हास्य कवी शेल चतुर्वेदी को काव्य खंड के लिए बुलाया. उन्होंने चल गयी कविता सुनाई. श्रोता हसी के मरे लोट-पोत हो रहे थे. परिचितों में केवल निर्दोषी जी रहे थे. इतना बड़ा अखिल भारतीय कवी सम्मलेन मैंने पहली बार देखा था.

Sunday, January 24, 2010

गतांक से आगे ...........

इटावा नुमाइश का कविसम्मेलन
इटावा नुमाइश के कविसम्मेलन का समाचार अमर उजाला में निकला,में अपने गाँव रजौरा में था. मेरे मामा श्री अगम शर्मा उन दिनों कवितायेँ लिखने लगे थे. उन्होंने मुझे अखबार दिखाया . उदय प्रताप के संयोजन में राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर, हास्य कवि शैल चतुर्वेदी, मुकुट बिहारी सरोज , सोम ठाकुर, देवी प्रसाद राही, बहादुर सिंह निर्दोषी और काका हाथरसी काव्य पाठ करने वाले थे . मैंने और मामाजी ने कविसम्मेलन में काव्य पाठ का निश्चय किया. एक साइकिल पर हम दोनों ७० किलोमीटर दूर इटावा के लिए चल पड़े .जाड़ों के दिन थे .पास में १० रूपए थे. रास्ते में साइकिल पंचर हो गयी. आसपास कोई साइकिल की कोई दुकान नही थी. एक गाँव में साइकिल पटकी ,ट्रक में बेठे और रात को ८ बजे तक इटावा प्रदर्शिनी पंडाल तक पहुँच गए

Sunday, April 19, 2009

गतांक से आगे

रामावतार सिंह शशि कारण लोगो ने मेरी तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था! मेरे पास महीने में ५-६ कवि सम्मेलन आने लगे!मुझे लखनऊ से पत्र मिला! कवि सम्मेलन का आमंत्रण था! में लखनऊ पहुंचा! संयोजक साहित्य के मर्मज्ञ थे और राष्ट्र भक्त नेता के रूप में विख्यात थे! कवियों के ठहरने की व्यवस्था उन्होंने अपने ही घर पर की थी ! उनकी दो लडकियां थी ! कवियों के आतिथ्य का भार उन्ही पर था !मैंने यहाँ प्रथम वार कुंवर हरिशचंद्र देव वर्मा "चातक" के दर्शन किये ! वे फरुखावाद के जमीदार थे ! कई भाषाओं में साधिकार लिखते थे ! दंड बैठक लगाया करते थे ! उनके बारे में प्रसिद्ध था की वे भोजन के बाद भी दो किलो मीठा खा जाते हैं ! वे वरिष्ठ कवि थे ! उस समय उनकी उम्र लगभग साथ वर्ष की थी !
चातक जी ने मुझे उम्र में सब से छोटा जान कर कहा "सागर" तुम घर जाकर उन लड़कियों से बोलो की मेरी अरहर की दाल बड़ी थाली में परसें और जो आज गाँव से घी आया है उस में से २५० ग्राम घी में जीरे का छौंक अकेले मेरे लिए लगाएं ! मैं संकोची स्वभाव का था ! लड़कियों से बात करने की हिम्मत ही नहीं होती थी ! चातक जी का आदेश मानना ही था ! बड़ी हिम्मत करके मैंने लड़कियों से कहा की चातक जी ने २५० ग्राम घी के छौंक के लिए बोला है ! लडकियां जोर से हसीं और कहा 'चातक जी का हम लोग विशेष ध्यान रखते हैं !'
भोजन परोसा गया ! स्वादिष्ट ! मधुर !चातक जी के लिए २५० ग्राम घी का छौंक लगाया गया ! चातक जी बड़े प्रसन्न हुए ! उन्होंने दोनों कन्याओं को आशीर्वाद दिया कि तुम्हें अच्छे वर कि प्राप्ति होगी ! दोनों लडकियां शर्म के मारे लाल हो गयीं ! और हंसती रहीं ! हम उनके हास्य का रहस्य सुबह समझ पाए जब चातक जी कवि सम्मेलन कि समाप्ति पर अपने घर चले गए !

सुबह हम लोगों को नाश्ते के लिए बुलाया गया ! हम लोग संयोजक जी के साथ नाश्ता करने लगे ! उन लड़कियों ने बताया की चातक जी को देशी घी की ज़रा भी पहचान नहीं है !रात हमने २५० ग्राम डालडा का छौंक लगाया था ! सभी लोग हंसने लगे ! उनके पिता ने उन्हें डाँटा और आइन्दा चातक जी के साथ ऐसी ध्रष्टता न करने के लिए कहा !हम रामावतार सिंह शशि के साथ खरफरी आ गए १ कुछ दिन खरफरी रह कर मैं घर आ गया ! अब मैं हर समय कविता के मूड में रहता था ! कविता के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था ! मेरे दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुके थे ! कभी मैं सरसों के लहराते फूलों से बातें करता था तो कभी आम्र मंजरियों से बतियाता था ! कभी भौरों की गुंजन सुनता था तो कभी तितलियों की रुनझुन ! पूनम के चाँद के साथ तो मैं ताज महल पर जाकर त्राटक किया करता था ! अमावस की घोर अँधेरी रात के भीतर से भी झाँक कर अव्यक्त सौन्दर्य को देख पाना मैंने इन्ही दिनों जाना !समय ठहर गया सा लगता था ! एक निस्तब्ध नीरवता सी छा गयी थी ! कई बार मैं स्वयं को भूल सा जाता था !इस विराट नीरवता में से कोई कविता आकार ले लेती थी !कोई गीत फिजाओं में गूँज जाता था !शब्द बोलने लगते थे !मैं दस- बीस साथियों को इकठ्ठा करता और उन्हें कवितायें सुनाता ! वे कवितायें सुनकर आश्चर्य करते ! आज मैं स्वयं आश्चर्य करता हूँ कि ये कवितायें मुझ से कैसे लिख गयीं ! प्रयास करके तो मैं कभी कुछ लिख ही नहीं पाया !लिख पाया तो बिना प्रयास ही लिख पाया ! इसलिए जो सभी कवि कहते हैं कि कविता तो माँ सरस्वती जी का वरदान है ! यह मैं भी कहता हूँ और मानता हूँ !



क्रमश :

कवि

शिव सागर शर्मा

Wednesday, February 4, 2009

गतांक से आगे.......

मेरी कविता सुन कर नवल सिंह भदौरिया ने कहा शिव कुमार तुम ने अच्छा लिखा और अच्छा गाया,और लिखो मुझे भी दिखाओ तुम भविष्य में सोम ठाकुर की तरह प्रसिद्ध हो जाओगे !मैं तब तक सोम ठाकुर को नहीं जानता था मंच के किसी कवि का नाम तब तक मेरे जेहन में नहीं था सोम ठाकुर के प्रति जिज्ञासा जागी ! उन्हें देखने सुनने की तीव्र उत्कंठा हुयी !शीघ्र ही मेरी इच्छा पूर्ण हो गई ! कार्तिक का महीना था बटेश्वर के मेले में कवि सम्मलेन था मैं शाम को पंडाल के फर्श पर आगे बैठ गया ! ९ बजे कवि गण पधारे मैंने पहलीबार सोम ठाकुर को सुना ! उस समय उनकी उम्र ३०-३२ साल की होगी ! वे शानदार वस्त्र पहने हुए थे ,उनके घुंघराले काले बाल थे !गोरा रंग स्वस्थ शरीर वे काफी खूबसूरत थे ! उन्होंने छंद, सवैये तथा गीत सुनाये !उन्होंने अपना प्रसिद्ध गीत "मेरे भारत की मांटी है चन्दन और अबीर" सुनाया ! वे मंच पर अलग ही दिखते थे !मेरे मन पर उनकी गहरी छाप पड़ी ! मैंने मन में सोचा मैं भी सोम ठाकुर की तरह प्रसिद्ध बनूँगा ! मैंने सन १९७० में हाई स्कूल पास किया !अब मैं ११वीं कक्षा में था ! नवल सिंह भदौरिया मुझे महावीर दिगंबर इंटर कॉलेज आगरा में आयोजित कविसम्मलेन में ले गए !

कवि सम्मलेन में काव्य पाठ का मेरा यह पहला मौका था ! ये सन १९७१ की बात है रात में कविसम्मेलन प्रारंभ हुआ ! मैदान में लगभग ५००० श्रोता थे ! आगे छात्र बैठे थे ! गीतकार निखिल सन्यासी संचालन कर रहे थे !उन्होंने मुझे नवोदित कवि कहकर काव्य पाठ के लिए बुलाया न भूलने वाला वाकया मेरे साथ घटित हुआ १ मैंने कुछ गीत और मुक्तक लिख लिए थे ! मैंने एक मुक्तक पढा , जिसकी प्रथम पंक्ति थी "किसे सुनाये दर्द कहानी, दुनिया के सब मानव बहरे " एक श्रोता बीच में से खडा होकर बोला, "हमें सुनाओ" इतना कहना था की लोग हँस पड़े मैं आगे की अपनी पंक्तिया भूल गया , मेरे पैर कांपने लगे मुझे जाडों में पसीना आ गया ! निखिल सन्यासी ने इस ध्रष्टता के लिए छात्र को डाँटा ! और मुझे दुबारा मुक्तक पूरा करने के लिए कहा ! मुझे मुक्तक याद नहीं आ रहा था ! निखिल जी ने कहा "दुबारा प्रारंभ से सुनाओ" मैंने कोशिश की आश्चर्यजनक रूप से मुझे मुक्तक याद आगया ! मैंने मुक्तक पूरा पढ़ दिया ! लेकिन मुक्तक के बाद जो गीत पढने वाला था वो याद नहीं आया ! मैं मंच पर बैठ गया उस समय के प्रसिद्ध कवि मंच पर मौजूद थे ! उन्होंने मुझे दिलासा दी और मेरी तारीफ की ! कविसम्मेलन के समापन पर निखिल सन्यासी ने मुझे ११ रुपये दिए ! मैं अत्यंत प्रसन्न हुआ !इस वाक़ये से मैं इतना तो जान ही गया था कि कवि सम्मलेन में काव्य पाठ करना सरल काम नहीं है ! यह अत्यंत कठिन कार्य है ! अभी मुझे बहुत मेहनत कि जरूरत है !

Thursday, January 8, 2009

मेरी कविता यात्रा...

सन १९६९ में मैं नवीं कक्षा में पढता था ! दामोदर इंटर कालेज होलीपुरा का उन दिनों काफ़ी नाम था ! आगरा जिले के लोगों की इच्छा रहती थी की मेरा बालक होलीपुरा में पढ़े ! सौभाग्य से मुझे होलीपुरा में पढने का अवसर प्राप्त हुआ ! पुरानी वास्तुकला से बना ये कालेज काफ़ी बड़े परिसर में फैला हुआ है ! यमुना के बीहडों में कमल सा खिला यह कालेज काफ़ी भव्य था ! श्री नवल सिंह भदोरिया "नवल" हमें हिन्दी पढाते थे ! कवीर के एक दोहे की व्याख्या में पूरा पीरियड समाप्त हो जाता था ! वे हिन्दी और ब्रज भाषाके जाने माने कवि थे ! हमें उनके पीरियड का इन्तजार रहता था !
एन .सी.सी. की ड्रेस पहन कर एक बार उन्होंने १५ अगस्त को अपनी वीर रस की कविता चीन को चेतावनी देते हुए सुनाई ---- "नफरत से मेरे देश की माटी मत छूना , जल जाओगे तेज भरा अंगार है "
मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! मेरा बार बार मन होता की मैं भी कविता लिखूं और सब को सुनाऊं !
कालेज परिसर में गूलर ,पीपल, पाकर, खिरनी ,अमलतास,नीम और कनेर के सैकडों पेड़ थे ! चैतबैसाख में पतझर के बाद जो नें कोपलें निकलतीं थीं उनको मैं घंटों एक टक देखता रहता था ! कोपलें लाल लाल दहकते अंगारों सी लगती थीं पूरा यमुना का कछारदहकता सा लगता था ! मेरे मन में भी कुछ दहकता सा लगता था ! एक आग सी थी जो भीतर ही भीतर महसूस होती थी ! मेरा दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुकीं थी , कुछ शब्द मन के आकाश में उमड़ घुमड़ रहे थे ! रह रह कर बिजली कौंधती थी ! कुछ समय के लिए चारो तरफ़ आलोक छा जाता था ! पन्नों पर कुछ शब्द आकार लेने लगे थे !
उन दिनों मैं एक नई फ़िल्म देखि थी नाम था "दो कलियाँ "! उस में एक गाना था --" बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आँख के तारे , ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान् को लगते प्यारे " ये गाना मेरे मन में रच बस गया था !
ये गाना मअं दिन रात गाया करता था ! इसी तर्ज पर मैंने एक गीत लिख लिया ! नाम दिया "बसंत गीत " !
अब मैं इसे सुनाना चाहता था !
बसंत पंचमी को कालेज में एक समारोह होना था ! प्रार्थना सभा में नवल सिंह भदौरिया ने कहा , जो विद्यार्थी अपनी स्वरचित कविता पढ़ना चाहें वो अपना नाम दे दे ! मैंने अपना नाम तुंरत लिखवा दिया ! अभी समारोह में तीन दिन शेष थे ! मेरा दिल रह रह कर धड़कता था ! वह धड़कन मुझे महसूस होती थी ! मैं काफ़ी बेचैन घूमता था !
तीन दिन तीन युग के समान जान पड़ते थे !
समारोह वाला दिन आ गया ! मेरा नाम पुकारा गया ! मैं स्टेज पर माइक के सामने जा कर खडा हो गया !
कालेज का सभागार खचाखच भरा था ! सामने विद्यार्थी थे इधर उधर कुर्सियों पर अध्यापक बैठे हुए थे मैंने बड़े उत्साह से गाया ----

"आया मधुमास सुहाना
पीले फूलों का है बाना !
ये वो पीले फूल हैं जिनपे
भंवरा है दीवाना !
आया मधुमास सुहाना -----
भोंरे गुनगुन गाते हैं ,
कलियों पर मंडराते हैं !
आते हैं फ़िर जाते हैं ,
जाकर फ़िर आ जाते हैं
इनका घर न ठिकाना है
आना है बस जाना है
इनकी गुनगुन से सीखा है
फूलों ने मुस्काना
आया मधुमास सुहाना "

तालियों की जोरदार गडगडाहट ! मैं अत्यन्त प्रसन्न था ! मेरी बेचैनी समाप्त हो चुकी थी ! मैं एक ही दिन में पूरे कालेज में प्रसिद्ध हो गया ! अध्यापकों ने मेरी पीठ ठोंकी ! सहपाठियों ने मुझे बधाई दी ! बड़ी क्लास के लड़के मेरे पास आते और मेरी तारीफ़ करते ! नवल सिंह भदौरिया का मैं प्रिय क्षात्र बन गया था ! मुझे याद है की चतुर्वेदियों के लड़के शाम को मेरे कमरे पर आए ! वे मुझे अपने घर ले गए १ मेरी कविता अपने माता पिता को सुनवाई ! उस दिन मुझे खूब आम और मिठाइयां खाने को मिलीं ! अब मैं गाँव भर का प्रिय पात्र बन गया था !

मेरे कुछ अध्यापकों का कहना था की लड़का बिगड़ गया है ! अभी तो नवीं क्लास में ही पढता है और फूलों पर भंवरों को दीवाना बना रहा है ! ये तो अभी से प्रेम प्यार की बातें करने लगा है ! आगे तो इसका भगवान् ही मालिक है !

क्रमश:
"शिव सागर शर्मा "