Thursday, January 8, 2009

मेरी कविता यात्रा...

सन १९६९ में मैं नवीं कक्षा में पढता था ! दामोदर इंटर कालेज होलीपुरा का उन दिनों काफ़ी नाम था ! आगरा जिले के लोगों की इच्छा रहती थी की मेरा बालक होलीपुरा में पढ़े ! सौभाग्य से मुझे होलीपुरा में पढने का अवसर प्राप्त हुआ ! पुरानी वास्तुकला से बना ये कालेज काफ़ी बड़े परिसर में फैला हुआ है ! यमुना के बीहडों में कमल सा खिला यह कालेज काफ़ी भव्य था ! श्री नवल सिंह भदोरिया "नवल" हमें हिन्दी पढाते थे ! कवीर के एक दोहे की व्याख्या में पूरा पीरियड समाप्त हो जाता था ! वे हिन्दी और ब्रज भाषाके जाने माने कवि थे ! हमें उनके पीरियड का इन्तजार रहता था !
एन .सी.सी. की ड्रेस पहन कर एक बार उन्होंने १५ अगस्त को अपनी वीर रस की कविता चीन को चेतावनी देते हुए सुनाई ---- "नफरत से मेरे देश की माटी मत छूना , जल जाओगे तेज भरा अंगार है "
मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! मेरा बार बार मन होता की मैं भी कविता लिखूं और सब को सुनाऊं !
कालेज परिसर में गूलर ,पीपल, पाकर, खिरनी ,अमलतास,नीम और कनेर के सैकडों पेड़ थे ! चैतबैसाख में पतझर के बाद जो नें कोपलें निकलतीं थीं उनको मैं घंटों एक टक देखता रहता था ! कोपलें लाल लाल दहकते अंगारों सी लगती थीं पूरा यमुना का कछारदहकता सा लगता था ! मेरे मन में भी कुछ दहकता सा लगता था ! एक आग सी थी जो भीतर ही भीतर महसूस होती थी ! मेरा दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुकीं थी , कुछ शब्द मन के आकाश में उमड़ घुमड़ रहे थे ! रह रह कर बिजली कौंधती थी ! कुछ समय के लिए चारो तरफ़ आलोक छा जाता था ! पन्नों पर कुछ शब्द आकार लेने लगे थे !
उन दिनों मैं एक नई फ़िल्म देखि थी नाम था "दो कलियाँ "! उस में एक गाना था --" बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आँख के तारे , ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान् को लगते प्यारे " ये गाना मेरे मन में रच बस गया था !
ये गाना मअं दिन रात गाया करता था ! इसी तर्ज पर मैंने एक गीत लिख लिया ! नाम दिया "बसंत गीत " !
अब मैं इसे सुनाना चाहता था !
बसंत पंचमी को कालेज में एक समारोह होना था ! प्रार्थना सभा में नवल सिंह भदौरिया ने कहा , जो विद्यार्थी अपनी स्वरचित कविता पढ़ना चाहें वो अपना नाम दे दे ! मैंने अपना नाम तुंरत लिखवा दिया ! अभी समारोह में तीन दिन शेष थे ! मेरा दिल रह रह कर धड़कता था ! वह धड़कन मुझे महसूस होती थी ! मैं काफ़ी बेचैन घूमता था !
तीन दिन तीन युग के समान जान पड़ते थे !
समारोह वाला दिन आ गया ! मेरा नाम पुकारा गया ! मैं स्टेज पर माइक के सामने जा कर खडा हो गया !
कालेज का सभागार खचाखच भरा था ! सामने विद्यार्थी थे इधर उधर कुर्सियों पर अध्यापक बैठे हुए थे मैंने बड़े उत्साह से गाया ----

"आया मधुमास सुहाना
पीले फूलों का है बाना !
ये वो पीले फूल हैं जिनपे
भंवरा है दीवाना !
आया मधुमास सुहाना -----
भोंरे गुनगुन गाते हैं ,
कलियों पर मंडराते हैं !
आते हैं फ़िर जाते हैं ,
जाकर फ़िर आ जाते हैं
इनका घर न ठिकाना है
आना है बस जाना है
इनकी गुनगुन से सीखा है
फूलों ने मुस्काना
आया मधुमास सुहाना "

तालियों की जोरदार गडगडाहट ! मैं अत्यन्त प्रसन्न था ! मेरी बेचैनी समाप्त हो चुकी थी ! मैं एक ही दिन में पूरे कालेज में प्रसिद्ध हो गया ! अध्यापकों ने मेरी पीठ ठोंकी ! सहपाठियों ने मुझे बधाई दी ! बड़ी क्लास के लड़के मेरे पास आते और मेरी तारीफ़ करते ! नवल सिंह भदौरिया का मैं प्रिय क्षात्र बन गया था ! मुझे याद है की चतुर्वेदियों के लड़के शाम को मेरे कमरे पर आए ! वे मुझे अपने घर ले गए १ मेरी कविता अपने माता पिता को सुनवाई ! उस दिन मुझे खूब आम और मिठाइयां खाने को मिलीं ! अब मैं गाँव भर का प्रिय पात्र बन गया था !

मेरे कुछ अध्यापकों का कहना था की लड़का बिगड़ गया है ! अभी तो नवीं क्लास में ही पढता है और फूलों पर भंवरों को दीवाना बना रहा है ! ये तो अभी से प्रेम प्यार की बातें करने लगा है ! आगे तो इसका भगवान् ही मालिक है !

क्रमश:
"शिव सागर शर्मा "