Saturday, August 7, 2010

गतांक से आगे....


मैंने और अगम शर्मा ने अपने नाम कि अलग अलग दो पर्चियां लिखीं,और काव्य पाठ   की प्रार्थना के साथ संचालक के पास भेज दी !
उदय प्रताप जी ने सरसरी निगाह पर्चियों पर डाली और अपने पास रख ली !
हमें उम्मीद थी की हमें बुलाया जाएगा ! ठण्ड लग रही थी! कुल्लाढ़  में कवियों के लिए चाय आ गई ! मामा जी ने कहा, चाय मत लेना ! कहीं कोई ये न कह दे की तुम को तो बुलाया नहीं है फिर चाय क्यों पी रहे हो ! आई हुई चाय लौटा दी और ठण्ड में कापते रहे ! कवियों के पास गर्म कपडे थे,शॉल थी ! कुछ कवि  तो कम्बल भी साथ ले कर आये थे ! हम घर से भाग कर आये थे ! वो भी बिना बताये ! यहाँ जाड़े का आनंद ले रहे थे !
     हम ने फिर पर्चियां भेजीं ! उदय प्रताप ने पर्चियों को घूरा, फिर हमें ! एक कवी को उन्होंने काव्य पाठ के लिए बुलाया ! और हमारे पास आ गए ! घुड़क कर बोले, मैं अनामंत्रित को काव्य पाठ नहीं करवाता ! तुम बिना बुलाये मंच पर कैसे आ गए ! चुप चाप कविता सुनो...समझे ? आस पास के दो-चार कवियों ने यह बात सुन  ली थी !
हम लोग बहुत झेंपे! मन में बहुत गुस्सा आया १ आखिर हम भी तो कवि हैं, नवोदित हैं तो क्या हुआ ! कितनी दूर से चल कर आये हैं ! आखिर शराफत भी कोई चीज़ होती है ! पर गुस्सा प्रकट करने का कोई मौका नहीं था हमारे पास ! हमारा एक कमजोर पक्ष था की हम बिना बुलाये मेहमान हैं ! उदय प्रताप ने ठीक जगह पर चोट की थी! हम लोग चुप चाप बैठ गए! हम लोगों की ना-समझी देखिये, चाय फिर आई, और हम लोगों ने बड़ी विनम्रता से चाय फिर लौटा दी ! हम रात भर पंडाल में ठिठुरते रहे !
दिनकर जी अध्यक्षता कर रहे थे ! हम लोगों ने तय किया की उदय जी की शिकायत दिनकर जी से करेंगे !हम खुश थे की उदय प्रताप जी पर डांट पड़ेगी ! कवि सम्मलेन भोर की किरण तक चला !
एक तम्बू में दिनकर जी बैठे सुवह की चाय पी रहे थे ! तम्बू में हम लोग घुस गए ! हम ने अपना परिचय दिया ! उन्हें अपनी-अपनी एक-एक कविता सुनाई ! उन्होंने हमारी पीठ ठोकी और हमें चाय पिलवाई ! हमें ठण्ड से कुछ राहत मिली ! हमने मौका देख कर रात की व्यथा कह सुनाई ! हमने बात पूरी की ही थी की उदय प्रताप जी आ गए !
हम लोग उन्हें देख कर कुछ डरे और कुछ झिझके ! किन्तु वे बोले, तुम लोग कविता लिखते हो तो हमने घर आ कर सुनाओ ! तुम्हारी कविता स्तरीय होगी तो तुम्हे हम अगले कवि सम्मलेन में बुलायेंगे ! हमारा गुस्सा और दर दूर हो गया !उदय प्रताप जी दिनकर जी को कार में बैठा कर ले गए ! सामने धुल उढ रही थी ! हमको नीरज जी की ये पंक्तियाँ -"कांरवा गुजर गया गुबार देखते रहे " बार-बार याद आ रही थी !
हमारी मौसी जी पास के ही एक गाँव में ही रहती थी !हमने पछायाँ गाँव जाने की ठानी ! चम्बल के बीहड़ों में बसा प्राचीन गाँव ! हम मौसी जी के घर पहुंचे ! उन्होंने कहा नहा लो तब तक खाना बना जा रहा है ! हम लोग नहाने के लिए चम्बल नदी की और चले गए ! बीहड़ के कगारों झर बेरियाँ खड़ीं थी ! उन में लाल लाल बेर लगे हुए थे ! हम लोग घंटे भर बेर खाते रहे !हाटों में कांटे चुभ गए थे ! पर परवाह किसे थी ! चम्बल में नहाए,स्वच्छा पानी में तली कि चीज़ें दिखाई दे रही थीं !देर से आने के लिए मौसी जी ने हमें डांटा !
सब्जी पूरी और मीठा खा कर हमें चैन पडा! हम ने मौसी जी को अपनी कवितायें सुनाई ! थोड़ी देर बाद हम सो गए ! सुवह होते ही घर कि तरफ चल दिए !घर पर माता जी कि डांट खानी पड़ी क्युकी हम बिना बताये घर से गायब हो गए थे !

1 comment:

Unknown said...

it is vry good ..... i appreciate all the kavitayein that u wrote for hindi jagat.......wish u gud 4 all