Wednesday, February 4, 2009

गतांक से आगे.......

मेरी कविता सुन कर नवल सिंह भदौरिया ने कहा शिव कुमार तुम ने अच्छा लिखा और अच्छा गाया,और लिखो मुझे भी दिखाओ तुम भविष्य में सोम ठाकुर की तरह प्रसिद्ध हो जाओगे !मैं तब तक सोम ठाकुर को नहीं जानता था मंच के किसी कवि का नाम तब तक मेरे जेहन में नहीं था सोम ठाकुर के प्रति जिज्ञासा जागी ! उन्हें देखने सुनने की तीव्र उत्कंठा हुयी !शीघ्र ही मेरी इच्छा पूर्ण हो गई ! कार्तिक का महीना था बटेश्वर के मेले में कवि सम्मलेन था मैं शाम को पंडाल के फर्श पर आगे बैठ गया ! ९ बजे कवि गण पधारे मैंने पहलीबार सोम ठाकुर को सुना ! उस समय उनकी उम्र ३०-३२ साल की होगी ! वे शानदार वस्त्र पहने हुए थे ,उनके घुंघराले काले बाल थे !गोरा रंग स्वस्थ शरीर वे काफी खूबसूरत थे ! उन्होंने छंद, सवैये तथा गीत सुनाये !उन्होंने अपना प्रसिद्ध गीत "मेरे भारत की मांटी है चन्दन और अबीर" सुनाया ! वे मंच पर अलग ही दिखते थे !मेरे मन पर उनकी गहरी छाप पड़ी ! मैंने मन में सोचा मैं भी सोम ठाकुर की तरह प्रसिद्ध बनूँगा ! मैंने सन १९७० में हाई स्कूल पास किया !अब मैं ११वीं कक्षा में था ! नवल सिंह भदौरिया मुझे महावीर दिगंबर इंटर कॉलेज आगरा में आयोजित कविसम्मलेन में ले गए !

कवि सम्मलेन में काव्य पाठ का मेरा यह पहला मौका था ! ये सन १९७१ की बात है रात में कविसम्मेलन प्रारंभ हुआ ! मैदान में लगभग ५००० श्रोता थे ! आगे छात्र बैठे थे ! गीतकार निखिल सन्यासी संचालन कर रहे थे !उन्होंने मुझे नवोदित कवि कहकर काव्य पाठ के लिए बुलाया न भूलने वाला वाकया मेरे साथ घटित हुआ १ मैंने कुछ गीत और मुक्तक लिख लिए थे ! मैंने एक मुक्तक पढा , जिसकी प्रथम पंक्ति थी "किसे सुनाये दर्द कहानी, दुनिया के सब मानव बहरे " एक श्रोता बीच में से खडा होकर बोला, "हमें सुनाओ" इतना कहना था की लोग हँस पड़े मैं आगे की अपनी पंक्तिया भूल गया , मेरे पैर कांपने लगे मुझे जाडों में पसीना आ गया ! निखिल सन्यासी ने इस ध्रष्टता के लिए छात्र को डाँटा ! और मुझे दुबारा मुक्तक पूरा करने के लिए कहा ! मुझे मुक्तक याद नहीं आ रहा था ! निखिल जी ने कहा "दुबारा प्रारंभ से सुनाओ" मैंने कोशिश की आश्चर्यजनक रूप से मुझे मुक्तक याद आगया ! मैंने मुक्तक पूरा पढ़ दिया ! लेकिन मुक्तक के बाद जो गीत पढने वाला था वो याद नहीं आया ! मैं मंच पर बैठ गया उस समय के प्रसिद्ध कवि मंच पर मौजूद थे ! उन्होंने मुझे दिलासा दी और मेरी तारीफ की ! कविसम्मेलन के समापन पर निखिल सन्यासी ने मुझे ११ रुपये दिए ! मैं अत्यंत प्रसन्न हुआ !इस वाक़ये से मैं इतना तो जान ही गया था कि कवि सम्मलेन में काव्य पाठ करना सरल काम नहीं है ! यह अत्यंत कठिन कार्य है ! अभी मुझे बहुत मेहनत कि जरूरत है !

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