Sunday, April 19, 2009

गतांक से आगे

रामावतार सिंह शशि कारण लोगो ने मेरी तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था! मेरे पास महीने में ५-६ कवि सम्मेलन आने लगे!मुझे लखनऊ से पत्र मिला! कवि सम्मेलन का आमंत्रण था! में लखनऊ पहुंचा! संयोजक साहित्य के मर्मज्ञ थे और राष्ट्र भक्त नेता के रूप में विख्यात थे! कवियों के ठहरने की व्यवस्था उन्होंने अपने ही घर पर की थी ! उनकी दो लडकियां थी ! कवियों के आतिथ्य का भार उन्ही पर था !मैंने यहाँ प्रथम वार कुंवर हरिशचंद्र देव वर्मा "चातक" के दर्शन किये ! वे फरुखावाद के जमीदार थे ! कई भाषाओं में साधिकार लिखते थे ! दंड बैठक लगाया करते थे ! उनके बारे में प्रसिद्ध था की वे भोजन के बाद भी दो किलो मीठा खा जाते हैं ! वे वरिष्ठ कवि थे ! उस समय उनकी उम्र लगभग साथ वर्ष की थी !
चातक जी ने मुझे उम्र में सब से छोटा जान कर कहा "सागर" तुम घर जाकर उन लड़कियों से बोलो की मेरी अरहर की दाल बड़ी थाली में परसें और जो आज गाँव से घी आया है उस में से २५० ग्राम घी में जीरे का छौंक अकेले मेरे लिए लगाएं ! मैं संकोची स्वभाव का था ! लड़कियों से बात करने की हिम्मत ही नहीं होती थी ! चातक जी का आदेश मानना ही था ! बड़ी हिम्मत करके मैंने लड़कियों से कहा की चातक जी ने २५० ग्राम घी के छौंक के लिए बोला है ! लडकियां जोर से हसीं और कहा 'चातक जी का हम लोग विशेष ध्यान रखते हैं !'
भोजन परोसा गया ! स्वादिष्ट ! मधुर !चातक जी के लिए २५० ग्राम घी का छौंक लगाया गया ! चातक जी बड़े प्रसन्न हुए ! उन्होंने दोनों कन्याओं को आशीर्वाद दिया कि तुम्हें अच्छे वर कि प्राप्ति होगी ! दोनों लडकियां शर्म के मारे लाल हो गयीं ! और हंसती रहीं ! हम उनके हास्य का रहस्य सुबह समझ पाए जब चातक जी कवि सम्मेलन कि समाप्ति पर अपने घर चले गए !

सुबह हम लोगों को नाश्ते के लिए बुलाया गया ! हम लोग संयोजक जी के साथ नाश्ता करने लगे ! उन लड़कियों ने बताया की चातक जी को देशी घी की ज़रा भी पहचान नहीं है !रात हमने २५० ग्राम डालडा का छौंक लगाया था ! सभी लोग हंसने लगे ! उनके पिता ने उन्हें डाँटा और आइन्दा चातक जी के साथ ऐसी ध्रष्टता न करने के लिए कहा !हम रामावतार सिंह शशि के साथ खरफरी आ गए १ कुछ दिन खरफरी रह कर मैं घर आ गया ! अब मैं हर समय कविता के मूड में रहता था ! कविता के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था ! मेरे दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुके थे ! कभी मैं सरसों के लहराते फूलों से बातें करता था तो कभी आम्र मंजरियों से बतियाता था ! कभी भौरों की गुंजन सुनता था तो कभी तितलियों की रुनझुन ! पूनम के चाँद के साथ तो मैं ताज महल पर जाकर त्राटक किया करता था ! अमावस की घोर अँधेरी रात के भीतर से भी झाँक कर अव्यक्त सौन्दर्य को देख पाना मैंने इन्ही दिनों जाना !समय ठहर गया सा लगता था ! एक निस्तब्ध नीरवता सी छा गयी थी ! कई बार मैं स्वयं को भूल सा जाता था !इस विराट नीरवता में से कोई कविता आकार ले लेती थी !कोई गीत फिजाओं में गूँज जाता था !शब्द बोलने लगते थे !मैं दस- बीस साथियों को इकठ्ठा करता और उन्हें कवितायें सुनाता ! वे कवितायें सुनकर आश्चर्य करते ! आज मैं स्वयं आश्चर्य करता हूँ कि ये कवितायें मुझ से कैसे लिख गयीं ! प्रयास करके तो मैं कभी कुछ लिख ही नहीं पाया !लिख पाया तो बिना प्रयास ही लिख पाया ! इसलिए जो सभी कवि कहते हैं कि कविता तो माँ सरस्वती जी का वरदान है ! यह मैं भी कहता हूँ और मानता हूँ !



क्रमश :

कवि

शिव सागर शर्मा